धर्म अनेक, ईश्वर भी अनेक फिर कैसे बने वे भाई-भाई? धर्म अनेक, ईश्वर भी अनेक फिर कैसे बने वे भाई-भाई?
मैं तो सब को प्यार करूँगा मैं तो सब को प्यार करूँगा
इस कविता में मैंने एक मानवीकरण उपकरण द्वारा उन सब से सवाल करने की कोशिश की है , जिसके लिए इंसान हर ... इस कविता में मैंने एक मानवीकरण उपकरण द्वारा उन सब से सवाल करने की कोशिश की है ,...
ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सांस ले रहा है, जी रहा ... ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सां...
रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये। रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये।
कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ ! कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ !